कथा शोर्य की !

देश की स्वतंत्रता, सम्मान ओर सीमा रक्षा हेतु गत वर्ष भारत-पाक संघर्ष में अनेक बहादुरों ने वीर-गति पायी. राजस्थान-पाकिस्तान सीमा पर सीमा-शेत्र में रहने वालों ओर वाहा नियुक्त सेना के वीर जवानों ओर अफसरों ने जिस शोर्य ओर साहस का परिचय दिया है, उसके विषय में देश के समाचार-पत्रों में बहुत कुछ प्रकाशित हो चुका है. लेकिन ऐसे ओर भी कई वीर हैं जिन्होने शोर्य ओर कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए वीरगति पायी है पर जिनके सम्बन्ध में अधिकतर लोग नहीं जान पाये है. अमर शहीद मेजर कुंवर पूरणसिंघ ऐसे ही शहीदों में से है. वे जैसलमेर की तनोट चौकी से छ: मील दूर पाकिस्तानियों से लोहा लेते हुए घायल हुए ओर ३० न्वेमबर की दोपहर को जिन्होंनें प्राण त्याग दिये.


पहले डिसेंबर की शाम को लगभग पाँच बजे उनका शव बीकानेर लाया गया जहाँ दूसरे दिन प्रात: नो बजे सैनिक सम्मान के साथ उनकी शव-यात्रा प्रारम्भ हुई. बीकानेर शहेर ओर उनके आस-पास के देहात से आये हज़ारों नर-नारियों ने इस वीर पुत्र की शव-यात्रा में भाग लिया ओर उसे श्रद्धांजलि अर्पित की. शव-यात्रा, बीकानेर के प्रमुख बाज़ारों से होती हुई श्मशान-स्थल पहुँची. जनता ने उनके शव पर पुष्प वर्षा की ओर 'अमर शहीद मेजर पूरणसिंघ अमर हो' तथा 'भारत माता की जय' के नारे लगाये. राजस्थान के इस बहादुर वीर के लिए अनेक स्त्री-पुरुषों एव बच्चों की आँखे सजल थी.

 

मेजर पूरणसिंघ की जन्म ४ जुलाई १९२७ को बीकानेर की लुरांकरण तहसील के मनेरा जाँव में हुआ था. आप के पिता ठाकुर कानसिंघ राठोड उस समय के बीकानेर राज्य के सादुल लाइट इन्फंतरी में जमादार पद पर थे. पूरणसिंघ की माता का स्वरगवस बहुत पहले हो गया था. अत: पूरणसिंघ का पालन-पोषण पिता ही ने किया. छह वर्ष की आयु में आप बीकानेर के नोबेल स्कूल (अब सादुल पब्लिक स्कूल) में प्रविष्ट हुए जॅहा आपने पाँचवी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की. इसके पश्चात आगे की शिक्षा के लिए महाराजा गंगसींघ बहादुर ने आपको अजमेर के किंग जॉर्ज रॉयल इंडियन मिलिट्री कालेज में भेजा जहा आपने दसवी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की. सन् १९४६ में आप बीकानेर ट्रैनिंग सेंटर में केडिट के रूप में रहे तथा सन् १९४७ में उस समय की स्टेट आर्मी के सैनिक सलाहकार ने आपको देहरादून अकादमी के लिए विशेष रूप से चुना ओर वहा भिजवाया जॅहा आपको दिसम्बर १९४७ में कमिशन देकर सेकेंड लेफ्टिनेंट बना दिया गया. इस बीच सन् १९४५ में आपका विवाह बीकानेर की कोलायत तहसील के हादला ग्राम में सैनिक सेवा से अवकाश प्राप्त रावलोत भाटी ठाकुर लालसिंघ की सुपुत्री से हुआ.


देहरादून से लोटने पर आपकी नियुक्ति करनी इन्फंतरी में हुई जिसमें रहकर सन् १९५० में आपने पाकिस्तानी डाकुओं का मुकाबला किया ओर उनमें से सात को धराशायी किया.

सन् १९५१ में अड़जुटेंट के रूप में आपकी बदली श्री गंगानगर में सदुल लाइट इन्फंतरी में हो गयी जो अब १६वीं राजपूत बटालियन कहलाती हैं. यहाँ पर आपने एम.टी.ओ. के पद पर कार्य किया.

 

१९वीं राजपूत बटालियन सन् १९५२ में कश्मीर के पुंछ सेक्टर में तनात की गयी. जॅहा आपने बड़ी सफलता के साथ कार्य किया ओर आठ पाकिस्तानी जासूस पकड़े. इसी समय आपके बड़े भाई हवलदार मेजर लालसिंघ भी आपकी इस बटालियन में बदली होकर आ गये. इस बटालियन में रहकर आप दोनों भाइयों ने जो कार्य किया, जनरल ब्रार ने उसकी बहुत प्रशंसा की थी. इसी समय आपकी पदोन्नति कर कॅप्टन बना दिया गया. इसके पश्चात आपकी बदली १६वीं पंजाब रेजीमेंट में हो गयी जो उस समय कश्मीर में थी.

सन् १९५९ में आप पुंजब ट्रैनिंग सेंटर मेरठ में आये. जॅहा आपको कंपनी कमांडर का पद संभालना पड़ा. १९५८ तक जॅहा सफलतापूर्वक एव निष्ठा से कार्य करने के पश्चात आपकी बदली शिलॉंग (असम) हो गयी जॅहा आपको क्वाटर मास्टर का पद सोपा गया.

 

सन् १९६० के मई मास में आप पूना के ५७० फील्ड सेक्यूरिटी सेक्षन में सेक्यूरिटी अफ़सर के पद पर नियुक्त किये गये जॅहा आपको जुलाई १९६४ में पदोन्नति कर मेजर बना दिया गया.

सन् १९६४ के जुलाई मास में मेजर पूरणसिंघ का तबादला १६वी पंजाब रेजिमेंट १६वी ग्रेनेडीयर में कर दिया गया. कुछ समय बाद १९६४ में ही आपको 'गंगा जैसलमेर रिसाले' में भेज दिया गया जॅहा आप चुनी हुई 'सी' कंपनी के कमांडर नियुक्त हुए. अप्रेल १९६४ मे. कच्छ-पाक संघर्ष के समय आपकी 'सी' कंपनी को गड़रा रोड चौकी पर तैनात किया गया. ४ अक्टोबर ६५ को आपको राजस्थान मे जैसलमेर सीमा की रक्षार्थ जाने का आदेश मिला. जहा पाकिस्तानी घुस्पेथियो के चुंगल में फसि हमारी खाली चौकियों को छुड़ाने का काम उन्हे सोपा गया. स्व. मेजर पूरणसिंघ ने चार अक्टोबर से लेकर ३० नवम्बर तक जैसलमेर शेत्र की बुईली, सुल्ताना, आसू का तारा, शाहगढ़, सादेवाला आदि अनेक चौकियों को पुन: क़ब्ज़े में लिया ओर पाकिस्तानी घुस्पेथियो को उनकी सीमा में खदेड़ा.


अंत में आपको तनोट की रक्षा का भार सौपा गया जॅहा पहले मेजर जयसिंघ (थेलासर) पाकिस्तानियों के तीन बड़े हमले विफल कर चुके थे. तनोट की रणभूमि में पाकिस्तानियों ने कायरता से लुक छिप कर आप पर घात लगाकर हमला किया. थोड़े समय बाद तनोट में अपनी मात्रभूमि की रक्षार्थ आपने अंतिम साँस ली.

 

मदनसिंघ देवड़ा